इक ग़ज़ल उस पे लिखूँ दिल का तकाज़ा है बहुत
इक ग़ज़ल उस पे लिखूँ दिल का तकाज़ा है बहुत इन दिनों ख़ुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत रात हो दिन हो ग़फ़लत हो कि बेदारी हो उसको देखा तो नहीं है उसे सोचा है बहुत तश्नगी के भी मुक़ामात हैं क्या क्या यानी कभी दरिया नहीं काफ़ी, कभी क़तरा है बहुत मेरे हाथों की लकीरों के इज़ाफ़े हैं गवाह मैं ने पत्थर की तरह ख़ुद को तराशा है बहुत
आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है, मुझ में
आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है, मुझ में| और फिर मानना पड़ता है के ख़ुदा है मुझ में| अब तो ले-दे के वही शख़्स बचा है मुझ में, मुझ को मुझ से जुदा कर के जो छुपा है मुझ में| मेरा ये हाल उभरती हुई तमन्ना जैसे, वो बड़ी देर से कुछ ढूंढ रहा है मुझ में| जितने मौसम हैं सब जैसे कहीं मिल जायें, इन दिनों कैसे बताऊँ जो फ़ज़ा है मुझ में| आईना ये तो बताता है के मैं क्या हूँ लेकिन, आईना इस पे है ख़मोश के क्या है मुझ में| अब तो बस जान ही देने की है बारी ऐ "नूर",
हमें अनपढ़-गंवार बुलाते हो
झूठे इतिहास लिखकर, विजेता बन बैठे तुम, पाखंड फैलाकर, सत्ताधारी बन बैठे तुम, और हमें नीच बुलाते हो ??. खेत-खलियान हड़पकर, धनवान बन बैठे तुम, भुखमरी फैलाकर, सभ्यवान बन बैठे तुम, और हमें अछूत बुलाते हो ?? महिलाओं को देवदासी बनाकर, देवता बन बैठे तुम, दहेज़-प्रथा फैलाकर, संस्कृतिवान बन बैठे तुम, और हमें समाज-कंटक बुलाते हो ?? लोगों को जात-पात में बांटकर, मानवीय-प्रेरक बन बैठे तुम, साम्प्रदायिकता फैलाकर, शांति-दूत बन बैठे तुम,
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दंगे रोके जा सकते हैं
साम्प्रदायिक और जातीय दंगों की जड़ें हमारे समाज में ही मौजूद हैं, राजनीतिक लोग तो बस उसका लाभ उठाते हैं। ये जड़ें हैं-धर्म और जातिकी। बहुसंख्यक लोगों के सामाजिक-आर्थिक शोषण की बुनियाद में भी यही दोनों चीजें हैं और अल्पसंख्यक लोगों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान में भी यही दोनों चीजें हैं। इस सच्चाई को अल्पसंख्यक (शोषक) वर्ग तो अच्छी तरह समझता है, पर बहुसंख्यक (शोषित) वर्ग समझने की कोशिश नहीं करता। उन पर धार्मिक शासन करते हैं उनके धर्मगुरु और राजनीतिक शासन करते हैं उनके जातीय नेता। ये जातिवादी नेता हजारों साल पुराने अर्द्धबर्बर सामन्तवादी वर्णवादी समाज को जिन्दा रखना चाहते हैं, जिसके लिये
सेना भर्ती के दौरान हंगामा, कई घायल
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में रविवार को सेना में भर्ती प्रक्रिया के दौरान अचानक अभ्यार्थियों के बीच भगदड़ मच गई। पुलिस बल को लाठीचार्ज करना पड़ा, जिससे एक दर्जन से अधिक युवक घायल हो गए। घायलों को इलाहाबाद रेफर कर दिया गया है। पुलिस के अनुसार, रविवार सुबह सीआईसी में सेना में भर्ती की प्रक्रिया शुरू हुई। इसमें शामिल होने के लिए छह जनपदों से हजारों युवक वहां पहुंचे।
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घुट-घुट मरती हैं बच्ची
:: Maa ::
माँ तुम्हें पढ़कर तुम्हारी उँगली की धर कलम गढ़ना चाहता हूँ तुम सी ही कोई कृति तुम्हारे हृदय के विराट विस्तार में पसरकर सोचता हूँ मैं और खो जाता हूँ कल्पना लोक में फिर भी सम्भव नहीं तुम्हें रचना शब्दों का आकाश छोटा पड़ जाता है हर बार तुम्हारी माप से माँ तुम धरती हो।
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:: औरतें ::
औरतें – मनाती हैं उत्सव दीवाली, होली और छठ का करती हैं घर भर में रोशनी और बिखेर देती हैं कई रंगों में रंगी खुशियों की मुस्कान फिर, सूर्य देव से करती हैं कामना पुत्र की लम्बी आयु के लिए। औरतें – मुस्कराती हैं सास के ताने सुनकर पति की डाँट खाकर और पड़ोसियों के उलाहनों में भी। औरतें – अपनी गोल-गोल आँखों में छिपा लेती हैं दर्द के आँसू हृदय में तारों-सी वेदना और जिस्म पर पड़े निशानों की लकीरें।
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:: बेटियाँ ::
बेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैं जो बुनती हैं एक शाल अपने संबंधों के धागे से। बेटियाँ धान-सी होती हैं पक जाने पर जिन्हें कट जाना होता है जड़ से अपनी फिर रोप दिया जाता है जिन्हें नई ज़मीन में। बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैं जो बजा करती हैं कभी पीहर तो कभी ससुराल में। बेटियाँ पतंगें होती हैं जो कट जाया करती हैं अपनी ही डोर से और हो जाती हैं पराई। बेटियाँ टेलिस्कोप-सी होती हैं जो दिखा देती हैं– दूर की चीज़ पास।
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:: फैशन का टशन या टेंशन ::
आजकल की लड़कियों का फैशन देख किसी को समझ ही नहीं आता है कि आखिर यह हो क्या रहा है? मंगलसूत्र और सिंदूर को लड़कियां टेंशन का नाम देती हैं तो साड़ियां सिर्फ अलमारी में पड़ी पडी कभी कभार ही निकल पाती हैं. सर पे सिंदूर का “फैशन” नही है, गले मे मंगलसूत्र का “टेंशन” नही है! माथे पे बिंदी लगने मे शर्म लगती है, तरह तरह की लिपस्टिक अब होंठो पे सजती है! आँखो मे काजल और मस्कारा लगाती हैं, नकली पलकों से आँखो को खूब सजाती हैं!
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