आज प्रभा ने भिनसारे ही
मुस्काते अधरों से बोला
कितने प्यारे लोग धरा के
उषा काल सब जाग गए हैं
घूम रहे हैं हाथ मिलाये
दर्द व्यथा सब चले भुलाये
सूर्य-रश्मि सब साथ साथ हैं
कमल देख ये खिला हुआ है
चिड़ियाँ गाना गातीं
हवा बसंती पुरवाई सब
स्वागत में हैं आई
सूरज नम है तांबे जैसा
जल निर्मल झरना कल-कल है
नदी चमकती जाती
सागर बांह पसारे पसरा
लहरें उछल उछल के तट पर
चरण पखारे आतीं
हे मानव तू ज्ञानी -ध्यानी
प्रेम है तुझमे कूट भरा
शक्ति तेरी अपार - है अद्भुत
हाथ जोड़ जो खड़ा हुआ
खोजे जो कल्याण भरा हो
मधुर मधुर जो कडवा न हो
कड़वाहट तो पहले से है
पानी में भी आग लगी है
तप्त ह्रदय है जलती आँखे
लाल -लाल जग जला हुआ है
खोजो बादल -बिजली खोजो
सावन घन सा बरसो आज
मन -मयूर फिर नाचे सब का
हरियाली हो धरा सुहानी
छाती फटी जो माँ धरती की
भर जाये हर घाव सभी
सूर्य चन्द्र टिमटिम तारे सब
स्वागत-मानव-तेरे आयें
निशा -चन्द्र-ला मधुर-मास सब
थकन तेरी सारी हर जाएँ
मानवता को हे मानव तू
अमर करे –
अमृत पिला -जिलाये !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१०.४.२०११ जल पी.बी.
- surendra kumar shukla bhramar5's blog
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