Pratapgarh

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ममता की तू मूरति माता

 हे अनाथ की नाथ -प्राण हे  

भाग्य विधाता -जग कल्याणी  

हे दधीचि की हड्डी वाली

शत शत नमन तुझे है माई

ममता की तू मूरति माता

 

रात रात भर जागी तू

पर मुझे सुलाए लोरी गाये 

भूखी रह भी तू कितने दिन 

अमृत तेरा दूध पिलाये 

कभी नजर तो कभी टोटका 

काजल ला तू रही बचाए 

जब गिरता मै दौड़ उठा  माँ

आँचल डाले 

गोदी अपने भर -भर लेती 

व्यथा चोट फिर रहे कहाँ जो

स्पर्श प्यार से मनहर लेती

 

 

मिटटी का मै कभी घरौंदा

बना -धूल में सन जाता था

आँचल से अपने झाडे तू

पावन-पूत बना देती 

 

तुझे चिढाने की खातिर मै

पेड़ - कहीं भी जा छुप जाता

बाग-बगीचे आँगन घर सब  

चपला सी तू दौड़ भागकर

खोज निकाले -तेरा जादू चल जाता

तेरी आँखों में जादू है

तेरी बातों में जादू

ममता की तू मूरति माता

राग द्वेष ईहा भय खाता !!

 

होंठ तुम्हारे शारद माँ हैं

कर कुबेर हैं -लक्ष्मी माँ

तू ब्रह्मा है जीवन-दायिनी

शिव विष्णु तू पालक जननी

रस में तू अमृत रस धारा

वेद पुरान तुम्हारे  मन माँ

हो वसंत तुम सावन मैया

जेठ दुपहरी छाँव तुम्ही !!

 

परम आत्मा है तू माता 

आत्मा मै -बस- एक बूँद वहीँ  

करे अमर तू इस आत्मा को

जहाँ रहे शीतल घन बरसे

प्यास सभी की चले बुझाये !!!

 

अंत बूँद टपके भी ये तो

हवन कुण्ड में पड़े -उड़े

या सीपी मुह मोती बन के

विजय श्री की हार गुंथे !!!

 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

8.5.2011 जल पी बी