बूढा पेड़
Submitted by surendra kumar ... on Tue, 07/24/2012 - 05:44
बूढा पेड़
झर-झर झरता
ये पेड़ (महुआ का )
कितना मन-मोहक था
रस टपकता था
मिठास ही मिठास
गाँव भर में
‘भीड़’ जुटती
इसके तले
‘बड़ा’ प्यारा पेड़
‘अपने’ के अलावा
पराये का भी
प्यार पाता था
हरियाता था
( सभी फोटो गूगल नेट से साभार लिया गया )
फूल-फल-तेल
त्यौहार
मनाता था
थम चुका है
अब वो सिल-सिला
बचा बस शिकवा -गिला
फूल-फल ना के बराबर
मन कचोटता है ……
आखिर ऐसा क्यों होता है ??
सूखा जा रहा है
पत्ते शाखाएं हरी हैं
‘कुछ’ कुल्हाड़िया थामे
जमा लोग हंसते-हंसाते
वही – ‘अपने’- ‘पराये’
काँपता है ख़ुशी भी
ऊर्जा देगा अभी भी
‘बीज’ कुछ जड़ें पकड़ लिए हैं
‘पेड़’ बनेंगे कल
फिर ‘मुझ’ सा
‘दर्द’ समझेंगे !
आँखें बंद कर
धरती माँ को गले लगाये
झर-झर नीर बहाए
चूमने लगा !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर’५
कुल्लू यच पी २५.६.१२
८-८.३३ पूर्वाह्न
- surendra kumar shukla bhramar5's blog
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